भगवत गीता श्लोक हिंदी

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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

कर्म करण्ते कर्मफलं च विचिन्तयेत् न कदाचित्।

यस्य नास्ति मनोगतव्यसः कश्चिद् दुःखदो भवति।

यस्य सर्वे करणीय एव कर्माणि स्यात्स्वभावजा:।


अर्थ: कर्म में ही तेरा अधिकार है, फल में कभी नहीं,

कर्म करते हुए फल के बारे में कभी मत सोचो।

जिसका मन में कोई इच्छा नहीं है, उसके लिए कोई दुखदाई नहीं है।

जिसका स्वभाव से ही सभी कर्म करने योग्य हैं,


You have the right to work only, but never to the fruits of work.

Never consider the fruit of action while performing action.

He who has no desire for the fruits of action is never distressed.

He who performs all actions as his duty,



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